राजस्थान के भीलवाड़ा स्थित टेक्सटाइल इकाइयाँ बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैला कर जल, वायु और भूमि को कर रही है नष्ट

जेडएलडी की आड में स्थानिय भूजल स्तर सहित पर्यावरण को अपूरणीय क्षति की आशंका

* न्यूज में वीडियो भी सामेल है


राजस्थान अपने पर्यटन के लिए विश्व पटल पर पहचाना जाता है। एक तरफ विशाल रेगिस्तान और दूसरी तरफ ऐतिहासिक किले देश-विदेश से पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। औद्योगिक रूप से, राजस्थान अपने खनन और कपड़ा उद्योगों के लिए भी जाना जाता है। इसीलिए राजस्थान की अपनी एक आभा है, लेकिन प्रदूषण के कारण कुछ लोगों द्वारा इस आभा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।

यहां आज हम बात करेंगे राजस्थान के भीलवाड़ा के बारे में। भीलवाड़ा क्षेत्र प्राकृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस जिले से होकर अनेक जलस्रोत प्रवाहित होते हैं। बनास, बेडच, कोठारी, खारी, मानसी, मेनाली, चंद्रभागा और नागदी नदियाँ इस जिले से होकर गुजरती हैं, इसलिए इन जल स्रोतों का संरक्षण वन्यजीवों के साथ-साथ मनुष्यों के लिए भी जरूरी है। लेकिन यहां दिखने वाले कुछ दृश्य कुछ ऐसे लोगों के नापाक इरादों को उजागर कर रहे हैं जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर अपनी जेब भर रहे हैं। भीलवाड़ा स्थित औद्योगिक एस्टेट में लगभग 32 टेक्सटाइल इकाइयाँ स्थित हैं। टेक्सटाइल उद्योगों द्वारा बड़े पैमाने पर फैलाये जा रहे प्रदूषण के कई दृश्य यहां कैमरे में कैद किए गए हैं, जहां प्रदूषित पानी बड़ी जल निकासी लाइनों के माध्यम से नालों में बहता हुआ दिखाई देता है।

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बता दें कि कुछ समय पहेले, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भूजल के घटते जा रहे स्तर को लेकर देश के 19 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों पर सख्त कार्रवाई की थी और उनसे रिपोर्ट मांगी थी। एक ओर जहां देश में भूजल को प्रदूषण से बचाने के लिए सख्त रवैया अपनाया जा रहा है, वहीं भीलवाड़ा में ऐसा लग रहा है जैसे प्रदूषण फैलाने वालों में किसी भी प्रकार डर नहीं दिखाई रहा है।

हाल ही में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारीयों के बालोतरा औद्योगिक क्षेत्र के दौरे के दौरान कुछ खामियां सामने आईं थी। जिसके बाद सीईटीपी के साथसाथ बडे पैमाने पर औद्योगिक इकाइयों को बंद कर दिया गया था। इसी पंक्ति में भीलवाड़ा औद्योगिक क्षेत्र में जो दृश्य देखने को मिल रहे है, उससे पता चलता है कि यहां की इकाइयाँ राज्य और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों का पालन नहीं कर रहीं है।

द्रश्यो के माध्यम से ऐसा प्रतीत होता है कि भीलवाड़ा औद्योगिक एस्टेट की परिचालन इकाइयों के द्वारा जीरो लिक्विड डिस्चार्ज – जेडएलडी का पूर्ण रूप से अनुपालन नहीं किया जा रहा है। यहां के कपड़ा उद्योग जल निकासी लाइनों के माध्यम से अनुपचारित प्रदूषित पानी को नालों में बहा रहे हैं। चूंकि यह बहता पानी केमिकल युक्त होता है, इसलिए यह मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ क्षेत्र में विचरण करने वाले पशु-पक्षियों सहित प्रकृति को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहा है।

केवल जल प्रदूषण तक यह बात रुकती नहीं है। यहां उद्योगों की चिमनियां काला धुआं उगल रही हैं। इस धुएं के साथ फ्लाई ऐश भी जमीन पर दूर-दूर तक बिखरी नजर आ रही है। इस तरह ये औद्योगिक इकाइयां जल के साथ-साथ वायु और भूमि प्रदूषण भी फैला रही हैं। इस केमिकल युक्त झागदार पानी के लंबे समय तक संपर्क में रहने से त्वचा संबंधी बीमारियों के साथ-साथ कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है। वायु प्रदूषण लोगों के फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे सांस संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। फ्लाई ऐश से होने वाली भूमी की क्षति के कारण भूमि को आगे चलकर बंजर बना सकती है।

साथ ही यह केमिकल युक्त पानी नाले से नदी तक पहुंच सकता है। जिसकी वजह से, पहले से ही पानी की कमी वाले इस राज्य के भूजल को नुकसान हो सकता है। किसानी में लगे किसानों के बोरवेल के पानी में केमिकल की मौजूदगी की संभावना बढ जाती है। इसलिए, जेडएलडी जैसी प्रक्रियाओं का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए, जिससे प्रदूषित पानी की खतरनाक प्रभावशीलता को कम किया जा सके। हालाँकि, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारियों को इस संबंध में सतर्कता दर्शानी चाहिए और बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के खिलाफ त्वरित और सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, जो प्रकृति का साथसाथ सभी के लिए एक हितावह कदम होगा।

जहां तक ​​भीलवाड़ा औद्योगिक एस्टेट के आसपास मानव बस्ती का सवाल है, यहां ज्यादातर श्रमिक वर्ग रहता है। इसलिए यह स्वाभाविक है कि वे प्रदूषण के दूरगामी प्रभावों से अवगत नहीं हैं। इसके लिए जिम्मेदार तंत्र का यहां मानव जीवन के साथ प्रकृति की रक्षा के लिए आगे आना एक मानवीय कदम माना जाएगा।

 

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