टाटा सोलर पावर प्लांट प्रतिदिन कर रहा है बारह लाख लीटर पानी की बचत

बीकानेर: देश की सबसे बड़ी एकीकृत ऊर्जा कंपनियों में से एक टाटा पावर के राजस्थान के बीकानेर में सोलर पावर प्लांट शुरू करने से जहां स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है वहीं इस प्लांट में पैनल की सफाई स्वचालित मशीन से करने से प्रतिदिन 12 लाख लीटर पानी की बचत भी की जा रही है।

बीकानेर के नूरसर में 225 मेगावाट से अधिक का करीब ढाई हजार हैक्टेयर में स्थित इस प्लांट क्षेत्र के ग्रीन क्षेत्र के रुप में विकसित होने से यहां वर्षा भी अधिक होने लगी हैं। इसके लगने से जहां यहां बंजर पड़ी भूमि का किसानों को उचित मूल्य मिलने के साथ बड़ी मात्रा में बिजली बनने से आने वाले समय में जब और ज्यादा बिजली बनने लगेगी तो बिजली के दामों में भी कमी आयेगी।

टाटा पावर सूत्रों ने मीडिया को प्लांट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि नूरसर प्लांट ने मुंबई की नॉन-कार्बन आपूर्ति को दुगुना कर दिया है और केरल के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में योगदान दिया है। मुंबई शहर के लिए 225 मेगावाट का यह नूरसर सोलर फार्म एक गेम-चेंजर बना है। भारत की सबसे बड़ी सोलर फैसिलिटीज़ में से एक नूरसर सोलर फार्म टाटा पावर के वितरण नेटवर्क में शुद्ध ऊर्जा को सीधे फीड करता है और इस तरह से शहर के हरित ऊर्जा इस्तेमाल को बढ़ाता है। इस साईट पर हर साल 520 एमयू शुद्ध ऊर्जा का विनिर्माण किया जा रहा है। इस बदलाव से लाखों मुंबई घरों को शुद्ध बिजली मिल रही है और उनके कार्बन फुटप्रिंट को भारी मात्रा में कम किया गया है।

पिछले डेढ़ साल में इस प्लांट में यहां के कम से कम दो सौ से तीन सौ स्थानीय परिवारों को रोजगार मिला है वहीं इससे कार्बन को नियंत्रण किया गया है। साथ ही इस क्षेत्र में पहले बरसात कम होती थी लेकिन अब यहां बारिश भी बढ़ी है।

इसके अलावा कंपनी के सीएसआर गतिविधियों के तहत महिलाओं का सशक्तीकरण का काम भी किया जा रहा है वहीं युवाओं के कौशल को विकसित करने का काम भी हाथ में लिया गया जिससे दसवीं पास करने के बाद आगे नहीं पढ़ पा रहे युवकों आईटीआई कराया जा रहा है। उन्हें सोलर प्लांट का अध्ययन कराया जा रहा है कि सोलर प्लांट में तकनीशियन को क्या काम करना होता हैं।

नूरसर स्थित टाटा पावर प्लांट से मुंबई टाटा डिस्ट्रीब्यूशन को बिजली जाती हैं वहां से केरल को भी बिजली की आपूर्ति की जाती हैं। इस प्लांट मुंबई की 15 से 20 प्रतिशत बिजली की आपूर्ति होती है। सूत्रों ने बताया कि जहां रेडियशन अधिक होगा वहां सोलर प्लांट लगाने में ज्यादा फायदा मिलता है, क्योंकि अधिक रेडियशन वाले क्षेत्र में बिजली अधिक बनती है। सोलर प्लांट के लिए रेडियशन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं और गुजरात एवं राजस्थान सबसे ज्यादा रेडियशन वाले क्षेत्र हैं। इसके अलावा राजस्थान में ज्यादात्तर दिन साफ रहते हैं वहीं दिन बड़ा भी होता है।

सूत्रों ने बताया कि अब नई तकनीकी के चलते प्लांट लगाने की कीमत भी कम हुई हैं जबकि शुरु में प्लांट लगाने में जहां प्रति मेगावाट 17 करोड़ रुपए खर्चा आता था अब केवल साढ़े तीन से चार करोड़ रुपए ही आता है। उन्होंने बताया कि हालांकि सरकार सड़क, बाउंड्री बनाने, पुलिस सहयोग आदि मदद करती है लेकिन प्लांट लगाने के मापदंड होते हैं उसी के अनुरुप प्लांट लगाया जाता है।

उन्होंने बताया कि टाटा पावर ने पानी की बचत के मद्देनजर यहां इतने बड़े प्लांट में सोलर पैनल की सफाई के लिए जहां प्रति पैनल एक लीटर पानी की जरुरत होती हैं वहां स्वचालित डस्ट क्लीयर मशीन लगाकर प्रतिदिन 12 लाख लीटर पानी की बचत की जा रही हैं। इस प्लांट में पांच लाख से अधिक पैनल लगे हैं। उन्होंने बताया कि प्लांट के रखरखाव की ज्यादा जरुरत होती है और इसी से उसके ज्यादा वर्षों तक काम करने की क्षमता बनी रहती है।

प्लांट लगाने के लिए किसानों को पहले इसके रखरखाव के बारे में पूरी जानकारी दी जाती और उन्हें इसके पैनल की सफाई का तरीका सिखाया जाता है। कुसुम योजना के तहत सोलर प्लांट लगाने के लिए किसान को केवल दस प्रतिशत हिस्सा ही देना पड़ता है बाकी का कंपनी द्वारा बनाकर दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि शुरु में महाराष्ट्र में एशिया का सबसे बड़ा प्लांट लगाया गया था।

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुंबई-बड़ौदा हाइवे के डिवाइडर पर लगाये जा रहे 47 मेगावाट विंड वे का खुद मानीटरिंग कर रहे हैं और यह कहा जा सकता है कि अब देश में लोगों के अच्छे दिन आने वाले हैं।

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