अन्नदाताओं की बात: बोरवेल के रासायनिक पानी से खेती करने किसान बने मूकबधिर तंत्र के आगे लाचार

अहमदावादः नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हाल ही में गुजरात में भूजल को लेकर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है और जवाब मांगा है। गुजरात के भूजल में फ्लोराइड, आर्सेनिक, सीसा, आर्सेनिक, नाइट्रेट समेत खतरनाक तत्वों की मात्रा पाई गई है। दूसरी ओर, गुजरात का भूजल जो खतरनाक तत्वों से प्रभावित हुआ है, जिसमें 27 जिलों में फ्लोराइड, 32 जिलों में नाइट्रेट, 12 जिलों में आर्सेनिक, 14 जिलों में आर्सेनिक, 5 जिलों में यूरेनियम और 1 जिले में सीसा जैसे खतरनाक तत्वों की उपस्थिति पाई गई है।

जहां देश के प्रधान मंत्री का लक्ष्य देश की कृषि प्रणाली को उन्नत करने के साथ-साथ किसानों की आय को दोगुना करना है, वहीं साबरकांठा प्रांत के एक गांव के किसानों के लिए खेती करना मुश्किल हो रहा है, उनकी कृषि भूमि अनुत्पादक होती जा रही है और स्थिति बद से बदतर होती जा रही है और आगे बढ़ते यह स्थिति गंभीर रूप अपनायेगी, यबी डर किसानो को लगातारर परेशान कर रहा है। यह स्थिति को लेकर इस गांव के किसान अग्रणी जिम्मेदार तंत्र तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। प्रकृति प्रहरी पर्यावरण टुडे के संज्ञान में आने के यह समस्या को समज ने के लिए पर्यावरण टुडे की टीम ने गाँव का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया।

दिसंबर की एक रात कड़ाके की ठंड के बीच किसानों ने अपनी पीड़ा बताई और सबूत भी पेश किए। पूरे मामले की गंभीरता को समझते हुए ग्राउंड जीरो से हर पहलू की जांच कर रिपोर्ट तैयार की गई। यह रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि हमारे देश में कृषि और उद्योग के बीच प्रतिस्पर्धा में कृषि की किस तरह उपेक्षा की जा रही है। इस रिपोर्ट से आप यह भी अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां दुनिया का हाल कैसा होगा।

किसानों की परेशानी जानने के लिए पर्यावरण टुडे की टीम साबरकांठा जिले के प्रांतिज तालुका के सोनासन गांव पहुंची। जहां गांव के कुछ किसानों ने शिकायत की कि बोरवेल में जो पानी आ रहा है वह केमिकलयुक्त है, जिससे उन्हें कृषि भूमि अनुत्पादक होने का भय सता रहा है। इसके अलावा, बोरवेल का ऐसा पानी पीने योग्य तो नहीं है, बल्कि कृषि उपयोग के लिए भी उपयुक्त नहीं है। इस प्रकार का जल प्रदूषण स्थानीय निवासियों के साथ-साथ जंगलों में रहने वाले वन्यजीवों के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है। उनकी बात सुनकर रात में खेत पर जाने का फैसला किया क्योंकि यहां खेती के लिए बिजली रात 10 बजे आती है।

दिसंबर महीने की एक सर्द रात में, पर्यावरण टुडे की टीम गंभीर स्थिति का जायजा लेने के लिए गांव के किसान नेता ऋषिभाई पटेल के खेत में पहुंची। जहा के दृश्य वास्तव में गंभीर जल प्रदूषण के वर्तमान और भविष्य के खतरे के बारे में बता रहे थे। जैसे ही खेत में पानी का सेम्पल लेने के लिए बोरवेल शुरू किया गया, पानी की आवाज ने सर्दियों की रात की खामोशी को तोड़ दिया और अपनी गड़गड़ाहट की आवाज जोड़ दी। यह बोरवेल की आवाज अपने किसान के मन की पीड़ा को व्यक्त करती हुई प्रतीत हो रही थी। बोरवेल से बहते पानी का नमूना लिया गया। यहां पहले तो पानी रंगहीन पाया गया, लेकिन कुछ देर बाद पानी में कुछ कण नजर आए, किसानों के मुताबिक ये कण रसायन के थे। तब इस पानी ने पीला रंग ले लिया। इस स्थिति को देखकर लगता है कि इस पानी से पैदा होने वाले कृषि उत्पाद स्वास्थ्य के लिए कितने हानिकारक होंगे? यह पानी मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ जानवरों और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है।

जिन के खेत के बोरवेल से पानी का सेम्पल लिया गया, वह किसान ऋषि भाई पटेल ने अपनी कहानी बताते हुए कहा कि यहां के ट्यूबवेल से आने वाला पानी बदबूदार और केमिकल वाला है। हमने हमारी बात गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तक पहूंचाई है, लेकिन अबतक कोई समाधान नहीं हुआ है।

प्रांतिज और कटवाल के सोनासन गांव की सीमा जीस चौराहे पर मिलती हैं, वहां एक ओर कुछ केमिकल और सिरेमिक कंपनियां हैं और दूसरी ओऱ खेत हैं। इन दोनों के बीच महज पांच सौ मीटर का फासला है। वर्तमान में खेतों में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम से आलू की खेती की जा रही है। यहां के किसान पिछले सात साल से इस खेती में परेशानी झेल रहे हैं। किसान ऋषिभाई पटेल ने कहा कि हमारी आजीविका कृषि पर निर्भर है। हम वर्षों से कृषि व्यवसाय से जुड़े हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उद्योगों का दायरा बढ़ा है। यहां भी काटवाल चौराहे के पास उद्योग स्थापित हो गए हैं और इसके बाद प्रदूषण बढ़ रहा है। वायु, भूमि और भूजल प्रदूषण बढ़ रहा है। आज स्थिति यह है कि ट्यूबवेल का पानी पीने योग्य तो है ही नहीं, सिंचाई योग्य भी नहीं है। इससे त्वचा समेत अन्य बीमारियां बढ़ रही हैं और भविष्य में कोई गंभीर बीमारी होने का डर रहता है।

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ऋषि भाई पटेल अपनी बात को जारी रखकर आगे कहते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी का सपना किसानों की आय दोगुनी करना है, लेकिन यहां ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि हमें किसानी छोड़ने का वक्त आ गया है। जबकि हमारे राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए एक अभियान चलाया है, प्राकृतिक खेती तो दूर की बात है… हमारे लिए ऐसी स्थिति निर्मित हो रही है जहां हमें खेती से दूर रहना होगा। जीपीसीबी सहित संबंधित तंत्र तक अपनी समस्या पहूचाने के बावजूद, कोई भी हमारे बात को नहीं सुन रहा है। जीपीसीबी की टीम यहां आती है, पानी के सैंपल लेती है, उनका परीक्षण करती है, रिपोर्ट आती है, लेकिन नोटिस दिया जाता है या नहीं वह भी हमारे संज्ञान में नही है, क्योंकि पहले जैसी ही स्थिति अब भी देखने को मिल रही है। यहां स्थित उद्योग दूषित पानी को जमीन में उतार रहे हैं और हमारी मिट्टी की उपजावता को कम कर रहे हैं। सरकार से हमारा विनम्र अनुरोध है कि इस समस्या का समाधान करें अन्यथा हमारी आजीविका चली जाएगी। अगर मामला नहीं सुलझा तो आखिरकार किसानों की आंदोलन की बारी आएगी।

सोनासन के एक अन्य जागरूक किसान भरतभाई पटेल के खेत का दौरा करते समय, उन्होंने भूजल प्रदूषण की उसी स्थिति को दोहराया। भरतभाई मौजूदा स्थिति के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि पहले तो यह पता ही नहीं था कि भूजल की ऐसी हालत क्यों हो रही है। लेकिन धीरे-धीरे बदबूदार केमिकल युक्त पानी आने से सारी बात सामने आ गई। इसके बाद हमने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सूचित किया। उन्हें सैंपल भी दिए गए हैं, लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। हमारे खेत सोनासन गांव और कटवाल की सीमा पर स्थित हैं, जिसके एक तरफ खेत हैं और दूसरी तरफ लगभग 10 उद्योग हैं। बोरवेल से सीधे रासायनयुक्त पानी निकल रहा है और इसमें केमिकल वेस्ट की मौजूदगी देखी जा सकती है।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि यहां केसर और हेक्सन नाम की दो केमिकल फैक्ट्रियों से प्रदूषण फैलाया जा रहा है। बगल की सिरेमिक फैक्ट्री से भी वायु प्रदूषण फैल रहा है। इन फैक्ट्रियों का धुंआ जमीन पर भी गिरता है और मिट्टी सफेद हो रही है, जिससे मिट्टी का उपजाउपन काफी कम हो जा रहा है।

भरतभाई ने आगे कहा कि हमारे गांव और आसपास के गांवों के किसानों ने संबंधित तंत्र और कलेक्टर को आवेदन दिया था। उस वक्त तो हमारी बात सुनी गई लेकिन उसके बाद जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। हमारी बातें सिर्फ सुनी जा रही हैं, कोई समाधान नहीं दिया जा रहा है। हमारी आय का साधन किसानी ही है, जो हमसे छीनी जा रही है। अभी कृषि उपज में जो कमी देखने को मिल रही है, उससे लगता है कि अगले पांच साल में हमें किसानी छोड़ने के लिए मजबूर हो जायेंगे।

सोनवान गांव के खेतों में स्थित बोरवेल से लिए गए नमूनों का परीक्षण फिलहाल आधिकारिक प्रयोगशाला में किया जा रहा है और रिपोर्ट जल्द ही आ जाएगी। लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि आखिर अन्नदाता को इस हद तक क्यों सहना पड़ रहा है। वे इस स्थिति से क्यों गुजर रहे हैं? क्या अपनी बात जन प्रतिनिधियों तक पहुंचाने के लिए आंदोलन जैसे रास्ते ही हैं? समय के साथ विकास करना जरूरी है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पर्यावरण की कीमत पर विकास पृथ्वी के विनाश का कारण बनता है।

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