पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पानी व खाने में बढ़ते प्लास्टिक के अंश पर जतायी चिंता
प्रयागराज: भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जल और खानपान की चीजों में प्लास्टिक के अंश मिलने पर चिंता व्यक्त किया है।
टिशू कल्चर के माध्यम से मोती बनाने वाले प्रयागराज के स्वतंत्र वैज्ञानिक पद्मश्री डाॅ़ अजय सोनकर ने शुक्रवार को बताया कि वह हाल ही में नयी दिल्ली स्थित पूर्व राष्ट्रपति के आवास पर उनसे भेंट कर दुनिया के अनेकों प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में “प्लस्टिक के बढ़ते खतरे” पर किए शोध के बारे में जानकारी दी। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति ने डाॅ़ सोनकर के शोध को पढ़कर प्लास्टिक के खतरों को लेकर गहरी चिंता व्यक्त किया।
डाॅ़ सोनकर से मिलने और उनके शोध को पढ़ने के बाद पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 11 दिसंबर को अपने एक संदेश में लिखा है “मैंने 2004 से अजय की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धियों को देखा है। वर्ष 2004 में मुझे अंडमान में उनकी प्रयोगशाला में जाकर बहुमूल्य मोती बनाने की तकनीक देखने का अवसर मिला। मैं उनकी वैज्ञानिक क्षमता से अति प्रभावित हूं।’ पूर्व राष्ट्रपति ने संदेश में लिखा है कि मानव और पृथ्वी को प्लास्टिक के खतरों से बचाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति अपनानी होगी। हमारे ग्लेशियर, पानी और जीवन के अन्य संसाधन इस खतरे की चपेट में हैं।
पूर्व राष्ट्रपति ने संदेश पत्र में लिखा है डाॅ़ सोनकर ने उन्हे बताया कि कैसे माइक्रोन आकार के प्लास्टिक के कण हर जगह फैल गए हैं, जो पृथ्वी पर मनुष्यों सहित सभी प्राणियों और पौधों के जीवन को नष्ट कर रहे हैं। कैसे वह प्लास्टिक कचरा जिसे आदमी ने अपने घर की सफाई के बाद बाहर फेंक दिया था, भोजन की थालियों और पेय पदार्थों में वापस लौट रहा है। यह स्थिति भयावह है। प्लास्टिक के सूक्ष्म कण वाष्पीकृत होकर बादलों में पहुँच जाते हैं, और बरस कर पूरी पृथ्वी को बीमार कर रहे हैं। हमारी सुदूर वन संपदा, ग्लेशियर, जल स्रोत, सब कुछ विनाश के कगार पर पहुंच गया है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने संदेश पत्र में लिखा है कि, “डॉ़ अजय के असाधारण प्रयासों के लिए हृदय से उनकी सराहना करता हूं”। उनके शोध ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है, कई अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिकाओं ने उनके शोध कार्यों की सराहना की है और उन्हें प्रकाशित किया है। मेरी हार्दिक इच्छा है कि उनके अध्ययन एवं खोजों से मानवता लाभान्वित हो, लोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं तथा अपने हाथों से हो रहे पृथ्वी के विनाश को रोकें। संपूर्ण मानवता के बेहतर स्वास्थ्य पर केंद्रित उनके भावी शोध कार्य के लिए मेरी शुभकामनाएं।