वायु प्रदूषण पर उच्चस्तरीय बैठक, पंजाब में पराली जलाने पर तत्काल रोेक लगाए जाने के निर्देश

नयी दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी और इसके आस पास इलाकों में वायु प्रदूषण के मुद्दे पर केंद्रीय कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में संबंधित राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक बैठक में निर्देश दिए गए हैं कि पंजाब में पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।

राज्यों को कहा गया है कि आगे पराली न जलाई जाए यह सुनिश्चित करने के लिए उपायुक्त/जिलाधिकारी (डीसी/डीएम), वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) और एसएचओ की जिम्मेदारी तय की जाए।

गुरुवार को जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार उच्चतम न्यायालय के हाल के निर्देश अनुसार कैबिनेट सचिव ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और एनसीटी दिल्ली के मुख्य सचिवों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बुधवार को एक बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के अध्यक्ष और पर्यावरण, वन, कृषि, आवासन एवं शहरी कार्य और विद्युत मंत्रालयों के सचिव भी मौजूद थे।

न्यायालय ने दिल्ली में वायु गुणवत्ता में गिरावट के मुद्दे पर सुनवायी के दौरान पिछले दिनों केंद्र और संबंधित राज्यों की सरकारों को तत्काल कदम उठाने को कहा था।

विज्ञप्ति के अनुसार सभी राज्यों से फसल अवशेषों के प्रबंधन की केंद्रीय कृषि मंत्रालय की योजना का अपने यहां प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने और धन का पूरा उपयोग करने के लिए कहा गया है।

विज्ञप्ति के अनुसार वायु प्रदूषण पर आपातकालीन बैठक के कहा, “हरियाणा में धान की कटाई 90 प्रतिशत से अधिक पूरी हो चुकी है, जबकि पंजाब में अभी 60 प्रतिशत कटाई हुई है।”

विज्ञप्ति के अनुसार बैठक में चर्चा की गयी कि “इसलिए कटाई के बाकी बचे मौसम के दौरान, विशेषकर पंजाब में, पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।” विस्तृत चर्चा के बाद कैबिनेट सचिव ने निर्देश दिया कि पंजाब राज्य प्रशासन इस फसल के मौसम के शेष दिनों में पराली जलाने संबंधी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कार्रवाई करेगा।

वायु गुणवत्ता प्रबंध आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों और राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराई जानकारियों के आधार पर यह सामने आया कि मौजूदा संकट की स्थिति मुख्य रूप से पराली जलाने के कारण उपजी है। 08 नवंबर को वायु प्रदूषण स्तर में 38 प्रतिशत योगदान पराली जलाने से हुआ। विज्ञप्ति के अनुसार 15 सितंबर से 07 नवंबर की अवधि में पराली जलाने की कुल 22,644 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें से 20978 (93 प्रतिशत) पंजाब में और 1605 (सात प्रतिशत) घटनाएं हरियाणा में हुईं।

बैठक में चर्चा के दौरान यह भी सामने आया कि सीएक्यूएम को पंजाब और हरियाणा में उड़न दस्ता भेजना चाहिए और खेतों में आग लगने की घटनाओं और डीसी/एसएसपी द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को लागू करने की स्थिति के बारे में दैनिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए। इसके लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी ) को कहा गया है कि उसे सीएक्यूएम को आवश्यक संख्या में मानव संसाधन उपलब्ध कराना चाहिए।

बैठक के निर्णयों के अनुसार पराली जलाने पर प्रतिबंध के उल्लंघन के संदर्भ में पिछले दो वर्षों के दौरान दर्ज किए गए मामलों के संबंध में सभी राज्य सरकारों द्वारा की जाने वाली सभी अनुवर्ती कार्रवाईयों का विवरण सीएक्यूएम के साथ साझा किया जाएगा।

बैठक में इस बात का उल्लेख किया गया कि कृषि मंत्रालय द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) योजना के तहत अब तक 3,333 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। इसमें से पंजाब को 1531 करोड़ रुपये और हरियाणा को 1006 करोड़ रुपये जारी किये गये। सीआरएम योजना के तहत पंजाब में लगभग 1.20 लाख और हरियाणा में 76,000 सीडर मशीनें उपलब्ध हैं। इन मशीनों के अधिकतम उपयोग से काफी हद तक पराली जलाने की घटनाओं को रोका जा सकता था।

पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों को पराली जलाने से रोकने के लिए उपलब्ध सीडर मशीनों का पूरा उपयोग करने का निर्देश दिया गया। बैठक में नोट किया गया है कि हरियाणा सरकार पूर्व-स्‍थान फसल अवशेष (एक्स-सीटू) प्रबंधन के लिए स्वयं की प्रोत्साहन योजना लागू कर रही है, जिसमें किसानों से भूसे की खरीद और उसका परिवहन आदि शामिल हैं।

हरियाणा सरकार ने किसानों को धान की जगह अन्य फसलों की बुआई के लिए प्रोत्‍साहित करने के लिए फसल विविधीकरण हेतु उनके द्वारा लागू की जा रही प्रोत्‍साहन योजना के बारे में भी जानकारी दी।

पंजाब सरकार से कहा गया है कि उसको भी तुरंत ऐसी ही योजनाएं शुरू करनी चाहिए और उनकी घोषणा करनी चाहिए, ताकि इस वर्ष के शेष भाग और अगले वर्ष में किसानों को पराली जलाने से रोका जा सके।

हरियाणा सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि अगले वर्ष में पराली न जलाई जाए, इसके लिए उसे एक्स-सीटू प्रबंधन की अपनी योजना का दायरा बढ़ाने और उसका विस्तार करने के प्रयास करने चाहिए।

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