भारत में औद्योगिक रासायनिक दुर्घटनाओं को रोकना और मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर ऐसी दुर्घटनाओं के प्रभाव को सीमित करना जरूरी

अधिवक्ता ए के सिंह

 

 

 

Article By: Sr. Advocate A K Singh (Supreme Court)



MSIHC नियम, 1989 बहुत अच्छी तरह से सोचे गए हैं और यदि इन्हें सख्ती से लागू किया जाए तो दुर्घटनाओं की संख्या के साथ-साथ मृत्यु और चोटों की संख्या में भी काफी कमी आएगी



DISH ने वर्ष 2021 एवं वर्ष 2020 में गुजरात में  खतरनाक दुर्घटनाएं की सूचना दी 


डायरेक्टर इन्डस्ट्रियल सेफ्टि एन्ड हेल्थ, गुजरात ने वर्ष 2021 के लिए 45920 पंजीकृत कारखानों और उनमें 549 खतरनाक दुर्घटनाओं की सूचना दी, जिसके परिणामस्वरूप 235 मौतें हुईं, जिनमें से 215 दुर्घटनाएं और 80 हताहतों की सूचना केमिकल मेन्यूफेक्चरिंग इन्डस्ट्रीज/फार्मास्युटिकल्स इन्डस्ट्रीज से मिली, जिनमें खतरनाक रसायन शामिल थे। वर्ष 2020 में गुजरात में 202 खतरनाक दुर्घटनाएं और 212 मौतें हुईं, जिनमें से 54 दुर्घटनाएं और 82 हताहतों की सूचना केमिकल मेन्यूफेक्चरिंग इन्डस्ट्रीज/फार्मास्युटिकल्स इन्डस्ट्रीज से मिली, जिनमें मुख्य रूप से खतरनाक केमिकल्स शामिल थे।


भारत में एक महीने के दौरान हर दूसरे दिन औसतन एक दुर्घटना और मृत्यु


हाल ही में शुक्रवार, 24 मई, 2024 को भारत के मुंबई के पास डोंबिवली में एक रासायनिक कारखाने में विस्फोट हुआ, जिसमें 9 लोग मारे गए और 64 घायल हो गए। मार्च 2020 के अंत में सरकार द्वारा लागू किए गए पूर्ण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद जब कारखानों ने परिचालन फिर से शुरू करने के लिए अपने शटर उठाए, तो उनमें औद्योगिक दुर्घटनाओं की बाढ़ आ गई। अकेले जनवरी और अगस्त 2021 के महीनों के बीच, देश भर में कम से कम 25 गंभीर औद्योगिक दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 120 से अधिक लोगों की जान चली गई। दुनिया भर के यूनियनों के जिनेवा स्थित महासंघ, इंडस्ट्रियलऑल ग्लोबल यूनियन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में इन आंकडो को और भी अधिक बताया गया है। इसकी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक महीने के दौरान हर दूसरे दिन औसतन एक दुर्घटना और मृत्यु हुई।

 

विशाखापट्टनम में एक केमिकल फेक्ट्री में गैस रिसाव के बाद 7/05/2020 को कम से कम 11 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोगों को अस्पताल ले जाया गया। दक्षिण कोरियाई एलजी कॉर्प के स्वामित्व वाले एक प्लास्टिक प्लांट से आसपास के आवासीय क्षेत्र में स्टाइरीन का रिसाव होने लगा। गैस के लक्षण दिखने पर सैकड़ों लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। एलजी कॉर्पोरेशन के विरुद्ध लापरवाही और गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है। स्टाइरीन गैस के तीव्र संपर्क से श्वसन और न्यूरोलोजिकल संबंधी लक्षण उत्पन्न होते हैं तथा अत्यधिक मात्रा में यह घातक भी हो सकता है। यहां एम्बुलेंस, कारों और यहां तक ​​कि दोपहिया वाहनों पर सवार होकर पीड़ितों को विभिन्न वार्डों में ले जाया जा रहा था। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गठित पांच सदस्यीय संयुक्त निगरानी समिति ने निर्धारित किया कि रसायनों के दबाव और तापमान की निगरानी और रखरखाव के लिए तंत्र की अनुपस्थिति, तथा स्टोरेज टैंक पर तैनात कर्मियों की लापरवाही इस आपदा के लिए जिम्मेदार थी। अगले 24 घंटों के भीतर दो अन्य बड़ी दुर्घटनाएं हुईं; छत्तीसगढ़ में एक पेपर फैक्ट्री में गैस रिसाव के बाद सात लोगों को अस्पताल ले जाया गया, और तमिलनाडु में एक कोयला खनन फैक्ट्री में बॉयलर फटने से सात अन्य घायल हो गए।

विशाखापट्टनम में हुई दुर्घटना ने दिसंबर 1984 में मध्य प्रदेश के शहर भोपाल में एक पेस्टिसाइड प्लांट (यूनियन कार्बाइड) से गैस रिसाव की कड़वी यादें ताजा कर दीं, जो इतिहास की सबसे बुरी ओधोगिक आपदाओं में से एक थी। लगभग 3,500 लोग, जिनमें से अधिकांश यूनियन कार्बाइड द्वारा संचालित संयंत्र के आसपास की झुग्गियों में रहते थे, अगले कुछ दिनों में मारे गए तथा आगामी वर्षों में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई और आज तक लोग इसके दुष्परिणाम भुगत रहे है !


अनुमानों के अनुसार, 2014 से 2017 के बीच 8000 से ज़्यादा ऐसी कार्यस्थल दुर्घटनाएँ हुईं


भारत में ओधोगिक दुर्घटनाएँ होना कोई नई बात नहीं है। कुछ अनुमानों के अनुसार, 2014 से 2017 के बीच 8000 से ज़्यादा ऐसी कार्यस्थल दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 6,300 से ज़्यादा मज़दूरों की जान चली गई। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि गुजरात और महाराष्ट्र, दो राज्य जिन्होंने हाल के दशकों में ओधोगिकरण की अनियंत्रित दर का अनुभव किया है, इसके एक बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं। विशेषज्ञों और एसोसिएशनों ने वर्षों से कंपनियों द्वारा सुरक्षा उपायों को लागू करने, आमतौर पर कम वेतन वाले कर्मचारियों को नियुक्त करने और उन्हें उचित प्रशिक्षण देने में तथा ऐसी घटनाओं के मद्देनजर नियोक्ताओं पर दायित्व निर्धारित करने में अधिकारियों की अनिच्छा की विफलता की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।

भारत के दो सर्वाधिक ओधोगिक राज्यों, गुजरात और महाराष्ट्र के दुर्घटना आंकड़ों पर करीब से नजर डालने पर विषम सुरक्षा रिकॉर्ड का पता चलता है। आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि अधिकांश दुर्घटनाएं रसायन से संबंधित उद्योगों में हो रही हैं जो खतरनाक रसायनों से संबंधित हैं।


MSIHC नियम


पर्यावरण एवं वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार ने खतरनाक रसायनों के मेन्यूफक्चर स्टोरज एन्ड इंपोर्ट ऑफ हजार्डज केमिकल्स रूल्स, 1989 को अधिसूचित किया है, जिसका उद्देश्य हजार्डज केमिकल्स से संबंधित उद्योगों में परिचालन सुरक्षा ढांचा स्थापित करने के उद्देश्य से विनियामक तंत्र स्थापित करना है, जिससे रासायनिक दुर्घटनाओं से बचा जा सके। इसके बाद, मंत्रालय ने अगस्त, 1996 के जी.एस.आर. 347 (ई) के तहत MSIHC नियम, 1996 के अनुपूरक के रूप में केमिकल एक्सिडेंट्स (ईर्मजन्सी, प्लानिंग, प्रीपेरडनेस एन्ड रिप्सोंस) नियम, 1996 [CAEPPR नियम, 1996] अधिसूचित किए।

इसके बाद, मंत्रालय ने समय समय पर अधिसूचना जारी करके विभिन्न राज्य सरकार / केंद्र सरकार के विभागों को कुछ प्रमुख जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, जिनका उद्देश्य औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली बड़ी रासायनिक दुर्घटनाओं को रोकना और मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर ऐसी दुर्घटनाओं के प्रभाव को सीमित करना है।


EF&CC-  एक सेन्ट्रल क्राईसिस ग्रूप का गठन


MSIHC नियम, 1989 के प्रावधानों के पूरक के रूप में, CAEPPR नियम, 1996 देश में क्राइसिस मेनेजमेन्ट सिस्टम और संबंधित संगठनात्मक समर्थन स्थापित करने के लिए वैधानिक बैकअप प्रदान करते हैं। रासायनिक दुर्घटना (EPPR) नियम, 1996 में देश में केन्द्र, राज्य, जिला और स्थानीय स्तर पर चार स्तरीय क्राईसिस मेनेजमेंट सिस्टम की परिकल्पना की गई है। नियम 3 के अनुपालन में सचिव की अध्यक्षता में (EF&CC) एक सेन्ट्रल क्राईसिस ग्रूप का गठन किया गया है। रासायनिक आपात स्थितियों के दौरान त्वरित सूचना आदान-प्रदान की सुविधा के लिए नियम 4 के अनुपालन में एक सेन्ट्रल क्राईसिस ग्रूप एलर्ट सिस्टम यानी रेड बुक भी लाई गई है। रेड बुक में रासायनिक (औद्योगिक) आपदा प्रबंधन से संबंधित केंद्रीय और राज्य नोडल प्राधिकरणों, प्रासंगिक राष्ट्रीय एजेंसियों/संस्थानों के नाम, पते और संपर्क विवरण शामिल हैं। रेड बुक को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया गया है तथा इसे प्रतिवर्ष अद्यतन किया जाता है। अंतिम अपडेट मार्च-2022 में किया गया था। रासायनिक (औद्योगिक) दुर्घटना आपात स्थितियों के दौरान राज्य प्राधिकरणों के साथ समन्वय करने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में एक वर्चुअल क्राइसिस कंट्रोल रूम भी स्थापित किया गया है।


MSIHC नियम, 1989 बहुत अच्छी तरह से सोचे गए हैं


MSIHC नियम, 1989 के तहत हजार्डज केमिकल्स से संबंधित कोई भी ओधोगिक गतिविधि सक्षम प्राधिकारी से पूर्व लिखित अनुमोदन के बिना शुरू नहीं की जा सकती है, जिसके लिए शामिल प्रत्येक हजार्डज केमिकल्स की सुरक्षा डाटा शीट तैयार करनी होगी, साइट पर आपातकालीन और साइट से बाहर आपातकालीन योजना तैयार करनी होगी, तथा नियमित अंतराल पर सुरक्षा अभ्यास आयोजित करना होगा। MSIHC नियम, 1989 बहुत अच्छी तरह से सोचे गए हैं और यदि इन्हें सख्ती से लागू किया जाए तो दुर्घटनाओं की संख्या के साथ-साथ मृत्यु और चोटों की संख्या में भी काफी कमी आएगी।

देश में रासायनिक (ओधोगिक) दुर्घटनाओं को रोकने के लिए, संबंधित केंद्रीय/राज्य प्राधिकरणों को MSIHC नियम, 1989 की अनुसूची 5 के अनुसार जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। हजार्डज केमिकल्स से निपटने वाले उद्योगों में सुरक्षा संबंधी प्रावधानों की निगरानी और उन्हें लागू करने के लिए स्टेट चीफ इन्सपेक्टर ऑफ फेक्टरीज (सीआईएफ) या कारखाना अधिनियम, 1948 के तहत गठित डिरेक्टोरेट ऑफ इन्डस्ट्रीयल सेफ्टी एन्ड हेल्थ (DISH) हैं।

कारखाना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत, राज्य सरकारों को कानून की आवश्यकताओं को लागू करने के लिए निरीक्षकों की नियुक्ति करना आवश्यक है, जो कथित तौर पर लगभग 3,50,000 पंजीकृत कारखानों पर लागू है, जिनमें खतरनाक प्रक्रियाएं करने वाली 6,000 इकाइयां शामिल हैं। गुजरात राज्य के लिए, जिसने 2021 में 45920 पंजीकृत कारखानों की सूचना दी, DISH के कुल कर्मचारियों की कुल स्टाफ 223 है, जिसके सामने वर्तमान में केवल 105 मेन पावर काम कर रहा है। वर्तमान उपेक्षित अवस्था में DISH वे कार्य नहीं कर सकता जो उससे अपेक्षित हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 8 मई, 2020 को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि ओधोगिक संयंत्रों को फिर से शुरू करने से पहले सुरक्षा ऑडिट करना राज्यों की जिम्मेदारी है, फिर भी इस बात पर सवाल उठाए गए हैं कि क्या वास्तव में ऐसे ऑडिट सही तरीके से की गई थी और क्या उनकी सिफारिशों पर कार्रवाई की गई थी? एलजी पॉलिमर्स गैस रिसाव के मामले में, कंपनी दो दशकों से अधिक समय से केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त किए बिना काम कर रही थी। इसके बावजूद, आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2019 में इकाई के विस्तार की अनुमति दे दी। पूर्व भारतीय वित्त सचिव ए.एस. सरमा, जो विशाखापट्टनम प्लांट के आवासीय क्षेत्र से कुछ मील की दूरी पर रहते हैं, ने कहा कि “इस राज्य में औद्योगिक सुरक्षा पालन बहुत खराब है और नियामक संस्थाएं बहुत ढीली हैं।”

भारत द्वारा स्वयं को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलने का प्रयास सराहनीय है, लेकिन यह विचार करना भी आवश्यक है कि अवसंरचना विकास में निर्बाध निवेश की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है, क्योंकि इसका संबंध ओधोगिक अवसंरचना के खराब नियोजन और रखरखाव के कारण होने वाली मानव जीवन की हानि और पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति से है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्यों के डिरेक्टोरेट ऑफ इन्डस्ट्रीयल सेफ्टी एन्ड हेल्थ (DISH), पेट्रोलियम एन्ड एक्सप्लोसिव्स सेफ्टी ओर्गेनाइजेशन (PESO) जैसे नियामक निकायों को मजबूत करना समय की मांग है।

*Photo: Symbolic

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