भारत रसायन लिमिटेड पर NGT ने लगाया 13.50 करोड़ रुपये का जुर्माना

  • 29 मई को एनजीटी ने औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
  • याचिकाकर्ता और वरिष्ठ पत्रकार आदित्य सिंह चौहान की ओर से पेश अधिवक्ता ए के सिंह ने मामले से संम्बधित जटिल नियामक ढांचे को समझने और समझाने के लिए की हुई कडी मेहनत के लिए ट्रिब्यूनल ने सराहा

अहमदाबाद: औद्योगिक इकाइयों में दुर्घटनाएं कई लोगों के लिए घातक बन जाती हैं। वहीं इस तरह की औद्योगिक दुर्घटनाओं से उत्पन्न स्थिति पर्यावरण की दृष्टि से बहुत गंभीर साबित होती है, जिसे अक्सर हाशिये पर धकेल दिया जाता है। इस दिशा में माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भरूच स्थित कंपनी पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए जुर्माना लगा के 29 मई, 2024 को एक महत्वपूर्ण और अनुकरणीय फैसला सुनाया है।

पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने पर लगाया गया जुर्माना

यह महत्वपूर्ण फैसला अहमदाबाद स्थित पर्यावरण कार्य से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार आदित्य सिंह चौहान द्वारा एनजीटी में दायर एक याचिका के मद्देनजर आया है। जिसमे, भरूच स्थित भारत रसायन लिमिटेड पर 2022 में दुर्घटना के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए 13.50 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

औद्योगिक दुर्घटनाओं के कारण पर्यावरणीय क्षति का मुद्दा उठाया गया

याचिकाकर्ता ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष औद्योगिक दुर्घटनाओं से उत्पन्न पर्यावरणीय क्षति का मुद्दा उठाया था। जिसके बारे में बात करे तो, यह दुर्घटना मैसर्स भारत रसायन लिमिटेड, भरूच के प्लांट-डी में 17 मई, 2022 को दोपहर में साइपरमेथ्रिक एसिड क्लोराइड के उत्पादन के दौरान हुई थी। जिसके कारण हवा में हानिकारक रसायन रिलीज हुए और फायर टेंडर ने आग पर काबू पाने के लिए पानी का छिड़काव किया, इसलिए हानिकारक और जहरीले रसायनों वाली आग को बुझाने के लिए इस्तेमाल किए गए पानी ने आसपास के क्षेत्रों में वायु, भूमि और जल प्रदूषण भी पैदा किया। यह घटना एक प्रसिद्द समाचार पत्र में प्रकाशित की गई थी। यह घातक दुर्घटना में 8 लोगों की मौत हो गई और लगभग 29 लोग घायल हो गए थे।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ए के सिंह को ट्रिब्यूनल से प्रशंसा मिली

अधिवक्ता ए के सिंह
अधिवक्ता ए के सिंह

इस फैसले को यहां महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक माना जा सकता है क्योंकि यह बार-बार हो रहे ऐसे औद्योगिक हादसों से लड़ रहे लोगों को उनकी लड़ाई में प्रेरित कर सकता है। एनजीटी ने याचिकाकर्ता आदित्य सिंह चौहान के वकील श्री ए के सिंह की सटीक दलील की सराहना करते हुए कहा कि फैसला देने से पहले हम अधिवक्ता ए के सिंह द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हैं, जिन्होंने जटिल विनियामक ढांचे को समझने और समझाने के लिए कडी मेहनत की है।

 

2 साल की लड़ाई के बाद ऐतिहासिक फैसला

यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि न केवल गुजरात में बल्कि भारत में भी रासायनिक इकाइयों में दुर्घटनाओं की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए, सरकार/वैधानिक निकायों को इस ढांचे पर मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि इस तरह की घातक औद्योगिक घटनाओं को रोका जा सके। इस संदर्भ में यह याचिका आदित्य सिंह चौहान ने दायर की थी, ताकि कुछ मजबूत फैसले के परिणामस्वरूप ऐसी घटनाओं के पीड़ितों को उचित न्याय मिले और ऐसी औद्योगिक दुर्घटनाओं से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का मुद्दा उठाया जा सके। इस मामले की समय सीमा की बात करें तो, उद्योग से संबंधित विभिन्न प्रासंगिक कानूनों पर तकनीकी चर्चाओं की श्रृंखला के साथ लगभग 2 वर्षों के संघर्ष के बाद, माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा ऐतिहासिक निर्णय सुनाया गया।

इसके अलावा, न्यायालय ने मृतकों और घायलों को पर्याप्त मुआवजा देने के लिए सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों और विभिन्न लागू श्रम कानूनों के साथ-साथ वर्तमान कारकों को ध्यान में रखते हुए मृतकों और घायलों के लिए मुआवजे की राशि को संशोधित किया।

इकाई महत्वपूर्ण मामलों की देखभाल में लापरवाह

दो साल के विचार-विमर्श के बाद माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निष्कर्षों को देखे तो, अधिकांश आवश्यक सुरक्षा उपाय घटना के बाद के हैं। इकाई को MSIHC नियम-1989 का अनुपालन करना और तदनुसार साइट पर उत्पादित सभी 61 खतरनाक रसायनों के लिए HAZOP स्टडी करना आवश्यक है, लेकिन लंबी प्रक्रिया के कारण इकाई ने केवल 22 खतरनाक रसायनों का HAZOP स्टडी किया है और शेष खतरनाक रसायनों का निर्माण HAZOP स्टडी के बिना किया गया है। इकाई को 92 खतरनाक रसायनों तक विस्तार करने के लिए EC भी मिला है। दूसरी ओर, MSIHC के नियम 7 के तहत ऐसी खतरनाक रासायनिक इकाइयों के लिए साइटों की मंजूरी की आवश्यकता होती है। MSIHC के नियम 10(6) के अनुसार, साल में एक बार सुरक्षा रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी चाहिए, लेकिन वर्ष 2016 से 2022 के बीच ऐसी कोई रिपोर्ट पेश नहीं की गई और रिपोर्ट दुर्घटना के बाद ही तैयार की गई, जिसमें सुधार के लिए 102 नॉन-कम्प्लायंस की पहचान की गई। दुर्घटना के बाद 21-12-2022 को आयोजित मॉक ड्रिल की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। उपरोक्त मुद्दे बतातें है कि दुर्घटना होने तक इकाई महत्वपूर्ण मामलों की देखभाल में लापरवाही बरत रही है।

जीपीसीबी द्वारा प्लान्ट बंद करने के आदेश को सीमित किया गया

रिएक्टर में विस्फोट के बाद, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 31 मई, 2022 को यूनिट को बंद करने का निर्देश जारी किया, जिसे बाद में 29 जून, 2022 को रद्द कर दिया गया, केवल प्लांट ए, बी और सी को छोड़कर, प्लांट-डी को बंद करने का निर्देश दिया गया था।

यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सुरक्षा रिपोर्ट वार्षिक आधार पर अपडेट की जाए

MSIHC नियम 1989 के अनुसार, किसी विशेष उद्योग की स्थापना के लिए साइट का अनुदान संबंधित प्राधिकारी द्वारा उचित मूल्यांकन के बाद ही अनुमोदित किया जाता है। औद्योगिक दुर्घटनाओं और मानव जीवन और आसपास की आबादी पर इसके प्रभाव से निपटान के लिए, राज्य पीसीबी के लिए सीटीई को मंजूरी देने से पहले कारखाने के मुख्य निरीक्षक की मंजूरी सुनिश्चित करना अनिवार्य होगा। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इकाई ने डिश को सुरक्षा रिपोर्ट सौंपी है या नहीं और सीटीओ जारी करने या रीन्यू करने से पहले इसे सालाना अपडेट किया गया है या नहीं।

जुर्माना तय करने की विधि पर उदाहरणीय निर्णय

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी के समक्ष कहा है कि उनके पास ईडीसी का मूल्यांकन करने के लिए कोई प्रथा नहीं होने के कारण इकाई से 1.5 करोड़ रुपये की राशि ली गई थी। इस मुद्दे के अनुसरण में माननीय ट्रिब्यूनल ने आग बुझाने के लिए पानी के बड़े पैमाने पर उपयोग के भारी पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखा। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की राय है कि परियोजना प्रस्तावक (प्रोजेक्ट प्रोपोनेंट) दुर्घटना के लिए और इस दुर्घटना के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। इसलिए इकाई की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022-23 में इकाई के लगभग 266.58 करोड़ के लाभ को ध्यान में रखते हुए, EBITDA का लगभग 5% यानी 13.3 करोड़ ईडीसी का जुर्माना लगाया गया, ताकि भविष्य में अन्य उध्योगों भी कानून के तहत सभी सावधानियां अपनाने में सावधानी बरतें। यह निर्णय अनुकरणीय बन गया है क्योंकि इसे दुर्घटनाओं के संदर्भ में जुर्माना तय करने के लिए अपनाया जा सकता है।

किस स्थिति में जीपीसीबी पूर्ण इकाई को बंद करने का दे सकता है निर्देश

एनजीटी ने कुछ पहलुओं पर ध्यान दिया है और गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (GPCB) को उल्लेखित कर कुछ चीजों का उल्लेख किया है। जिसके मद्देनजर, जीपीसीबी ऑनसाइट इमरजन्सी प्लान, सुरक्षा रिपोर्ट और CTE/CTO जारी करने से पहले, जैसा कि MSIHC नियम, 1989 के तहत कवर किये गये आइसोलेटेड स्टोरेज और उद्योगों के संबंध में रसायनों की सुरक्षा के लिए एकीकृत दिशानिर्देश ढांचे में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित किया गया है, तदानुसार, जीपीसीबी CTE/CTO जारी करने या CTE/CTO को रीन्यू करने से पहले MSIHC नियम 1989 के अनुसार संबंधित प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित ऑन-साइट इमरजन्सी प्लान, सुरक्षा रिपोर्ट और सुरक्षा ऑडिट सुनिश्चित करेगा। साथ ही जीपीसीबी ऑर्डर अपलोड करने के 1 महीने के भीतर इकाइयों के भविष्य के मामलों में अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए रूपरेखा स्थापित करेगा और प्रक्रिया का वर्णन करेगा।

इसके अलावा, जीपीसीबी समाचार पत्र और जीपीसीबी की वेबसाइट के माध्यम से उपरोक्त आदेश का व्यापक प्रचार करेगा और इस आदेश को अपलोड करने के एक महीने के भीतर विभिन्न माध्यमों से संबंधित औद्योगिक इकाइयों को सूचित करेगा और MSIHC नियम,1989 के तहत आवश्यक अनुमति प्रस्तुत करने के लिए अधिकतम तीन महीने की अवधि देगा और ऐसा प्रस्तुत करने के बाद विफलता के मामले में, अनुमोदन के बाद, जीपीसीबी पूर्ण इकाई को बंद करने का निर्देश देगा।

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